Saturday 10 February 2018

घरेलू हिंसा अधिनियम में अब पुरूषों को मिलेगी राहत, दो माह में होगा निर्णय


अजमेर की अदालत में मजिस्ट्रेट ने घरेलू हिंसा अधिनियम में फैसला देकर पुरूष को राहत प्रदान की है। मजिस्ट्रेट ने इस केस की जल्द से जल्द सुनवाई कर 60 दिन में निर्णय सुनाने का आॅर्डर दिया है।
एडवोकेट जिनेश सोनी ने बताया कि उनका पक्षकार अजय (परिवर्तित नाम) नेशनल इंश्योरेंस में काम करता है। अजय की ढ़ाई साल पहले उसी विभाग में काम करने वाली सुनिता (परिवर्तित नाम) से शादी हुई थी। शादी में दोनों के परिवार वालों ने रजामंदी देते हुए हिन्दु रीति रिवाज से विवाह करवाया था। सोनी ने कहा कि अजय व सुनिता छह माह तक दोनों साथ रहे जिसमें आए दिन विवाद होता रहता था। छह माह बाद सुनिता उसे छोड़कर चली गई और उससे तलाक देने की बात कही। जब अजय ने तलाक देने से इंकार कर दिया तो  उसके खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला अदालत में पेश किया। एडवोकेट सोनी बताते हैं कि उन्होंने अजय की ओर अदालत को बताया कि सुनिता को उससे तलाक चाहिए। उसके द्वारा लगाए गए सारे आरोप तथ्यहीन है, इसके सबूत भी उनके पास है लेकिन वह वर्तमान में अहमदाबाद में नौकरी कर रहा है। वहां से आने जाने में उसे बेहद परेशानी होती है। ऐसे में घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 (4) के तहत जल्द से जल्द सुनवाई कर निर्णय सुनाने की मांग की।
महिला-पुरूष है समान
एडवोकेट जिनेश सोनी बताते हैं कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 (4) के तहत पूर्व में केवल महिला को ही अर्जी लगाने का अधिकार था। उन्होंने ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट संख्या 3 के मजिस्ट अनूप कुमार के समक्ष महिला और पुरूष के समान अधिकार होने की बात पर जोर दिया और कहा कि जो फैसला पांच-छह साल बाद होगा यदि वही फैसला जल्दी हो जाएगा तो उनके पक्षकार अजय की नौकरी में भी कोई बाधा नहीं होगी साथ ही उसका खर्च भी कम हो जाएगा। सोनी ने कहा कि जेएम-3 अनूप कुमार ने उनकी बहस को सही मानते हुए इसकी जल्द सुनवाई करके साठ दिन में निर्णय का फैसला जारी किया है। इससे उनके पक्षकार के साथ ही अन्य पीड़ित पुरूषों को भी राहत मिल सकेगी।
केसों की भरमार
वर्तमान में अदालतों में घरेलू हिंसा अधिनियम के केसों की भरमार है। पति-पत्नी के बीच हुए विवाद के बाद घरेलू हिंसा अधिनियम, दहेज प्रताड़ना सहित अन्य केस किए जाते हैं। इन केसों में से अधिकांश में राजीनामा हो जाता है और कुछ प्रकरण ऐसे होते हैं जिनमें सजा होती है। ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के फैसले से मामले जल्दी हल हो सकेंगे और दोनों ही पक्षों को अदालत के अधिक चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे।
नवीन वैष्णव
(पत्रकार), अजमेर
9252958987
10-02-2018
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