इस जमाने में भी क्या बेटियों को अभिशाप माना जा सकता है। जवाब हालांकि ना में ही होगा लेकिन कुछ लोग आज भी बेटियों को अभिशाप मान रहे हैं। इसका जीता जागता उदाहरण रविवार अलसुबह सरवाड़ थाना क्षेत्र के गणेशपुरा गांव में देखने को मिला। जहां एक दिन की नवजात बच्ची को कंटीली झाड़िंयों में मरने के लिए छोड़ दिया गया। ग्रामीणों ने बच्ची के रोने की आवाज सुनकर जब जाकर देखा तो कांटों के बीच पड़ी मासूम नवजात रो रही थी और कांटों के कारण लहुलुहान हालत में थी। ग्रामीणों ने पुलिस को इसकी सूचना देकर उसे स्थानीय अस्पताल पहुंचाया जहां से उसे अजमेर के जेएलएन अस्पताल के लिए रैफर कर दिया गया। फिलहाल बच्ची की हालत खतरे से बाहर बताई जा रही है। चिकित्सकों की मानें तो बच्ची चैबीस घंटे के अंदर पैदा हुई है।
दंगल जैसी फिल्म भी बेअसर!
बेटियां हर क्षेत्र में परचम फहरा रही है। भले ही वह बोर्ड कक्षा की परीक्षाओं का परिणाम हो या फिर सिविल सर्विसेज या अन्य कोई परीक्षा। बेटियों को बचाने के लिए सरकार भी पूरी कोशिश कर रही है लेकिन इसके बावजूद भी लोगों की मानसिकता में बदलाव नहीं आ पा रहा है और आए दिन नवजात बेटियों या फिर गर्भ में पल रही बेटियों के भ्रुण लावारिस मिलने की घटनाएं सामने आती है। फिल्म इंडस्ट्री या यूं कहें कि प्रसिद्ध फिल्म एक्टर आमिर खान ने भी बेटियों को अभिशाप मानने की परम्परा को तोड़ने के लिए दंगल जैसी फिल्म का निर्माण किया था लेकिन शायद अब भी लोगों के मन से बेटे-बेटी में फर्क नहीं निकल पा रहा है।
पुलिस करे सख्ती
अमूमन देखा जाता है कि कहीं भी नवजात या भ्रूण मिलने के बाद पुलिस की ओर से अज्ञात माता-पिता के विरूद्ध मुकदमा तो दर्ज कर लिया जाता है लेकिन आरोपियों का पता नहीं लग पाता। ऐसे में पुलिस को चाहिए कि गहनता से इसकी जांच करे और दोषियों को सजा दिलवाएं, जिससे कि लोग ऐसा कृत्य करने से कतराए।
नवीन वैष्णव
(पत्रकार), अजमेर
9252958987
navinvaishnav5.blogspot.com
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