नवीन वैष्णव@ अजमेर
अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में बम ब्लास्ट के दो आरोपियों की सजा को हाईकोर्ट ने स्थगित कर जमानत पर छोड़ने के आदेश दिए हैं। जस्टिस मनीष भण्डारी की खण्डपीठ ने यह आदेश जारी किए।
एडवोकेट मनोज शर्मा और जे.एस. राणा ने हाईकोर्ट में दरगाह बम ब्लास्ट के आरोपी देवेन्द्र गुप्ता और भावेश पटेल के लिए जमानत याचिका दायर की थी। एडवोकेट राणा ने बताया कि उनके दोनों मुव्वकिलों के खिलाफ कोई सबूत नहीं थे, केवल मात्र संभावनाओं के आधार पर ही उन्हें दोषी करार दिया गया था। उन्होंने अदालत के समक्ष यह दरख्वास्त की कि भावेश पटेल का फोन 11 और 12 अक्टूबर को बंद था। केवल फोन बंद होने से ही यह नहीं माना जा सकता कि वह अजमेर आकर बम रखकर गया हो। इस दलील से न्यायाधीश संतुष्ट हुए। वहीं देवेन्द्र गुप्ता को लेकर दलील दी गई कि देवेन्द्र गुप्ता ने जो ड्राईविंग लाईसेंस बनवाया उसमें दलाल ने कूटरचित दस्तावेजों को काम में लिया। इसके आधार पर ही यह माना गया कि जो सिम दरगाह के पास से बरामद हुई वह देवेन्द्र गुप्ता के नाम से ली गई होगी जबकि ऐसा भी प्रमाणित नहीं हुआ। इन सभी दलीलों को सुनकर न्यायाधीश ने दोनों आरोपियों की सजा को स्थगित कर जमानत देने के आदेश जारी किए। राणा ने कहा कि दोनों आरोपी शुक्रवार को जेल से बाहर आएंगे।
मामला एक नजर
11 अक्टूबर 2007 को अजमेर स्थित विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा साहब की दरगाह में बम ब्लास्ट किया गया था। जिसमें हैदराबाद निवासी तीन जायरीन की मौत हो गई थी जबकि कई घायल हो गए थे। इस मामले में चार आरोप पत्र पेश किए गए। इसके आधार पर 8 मार्च 2017 को सीबीआई कोर्ट ने भावेश पटेल, देवेन्द्र गुप्ता और सुनिल जोशी को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा से दण्डित किया था। सुनिल जोशी की पूर्व में ही मृत्यु हो गई थी जबकि देवेन्द्र गुप्ता और भावेश पटेल को 2010 में गिरफ्तार कर लिया गया था।
नवीन वैष्णव
(पत्रकार), अजमेर
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30-08-2018
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