Sunday 28 May 2017

बच्चों पर नहीं बनाएं अनावश्यक दबाव

राजस्थान बोर्ड और सीबीएसई के परिणाम जारी हो रहे हैं। किसी को अच्छे नम्बर मिले होंगे तो कुछ स्टूडेंटस को उम्मीद के अनुसार नम्बर नहीं मिल सके होंगे वहीं कुछ इस परीक्षा में सफल भी नहीं हो पाए होंगे। परिणाम को लेकर माता-पिता को भी खासी उम्मीदें रहती है और फिर उम्मीद पूरी नहीं होने पर वह अपने बच्चों को बुरा भला कहते हैं और किसी अन्य के बच्चों से तुलना करते हैं। इससे बच्चे मानसिक तनाव में आ जाते हैं और इसी आवेश में आकर कई जिंदगी को भी अलविदा कह जाते हैं।
परीक्षा परिणाम से हताश होने के बजाय बच्चे अपने मन में गांठ बांध ले कि यदि इस बार परीक्षा में अच्छे अंक नहीं ला सकें तो अगली बार अवश्य ही अच्छे अंकों से पास हो। गत वर्ष हुई गलतियों को नहीं दोहराते हुए पुनः नए सिरे से पढ़ाई मंे जुट जाएं, ओर यदि कोई पढ़ाई से ही जी चुरा रहा है तो वह किसी अपने पसंद के क्षेत्र में दिमाग लगाए और ऐसा करके दिखाएं जिससे लोग उनकी प्रशंसा करते नहीं थके।
माता- पिता दे स्वतंत्रता
बच्चों का परिणाम अच्छा नहीं आने पर माता पिता बजाय उसको डांटने के उसे प्यार से बात करें और जानें कि आखिर क्या कारण रहा जो उसके कम नम्बर आए। कहीं ऐसा तो नहीं कि पढ़ाई में उसे किसी तरह की परेशानी का सामना करना पड़ रहा हो या उसे पढ़ाई का माहौल नहीं मिल पा रहा हो। उसकी परेशानी जानने के साथ ही माता पिता को बच्चे के दसवीं पास करके विषय का चयन करने में उसकी मदद करनी चाहिए ना कि उस पर दबाव बनाया जाए कि हमने साइंस से पढ़ाई की है तो तुम भी साइंस ही पढ़ो। इस तरह के दबाव के कारण भी कई बच्चों का परिणाम बिगड़ता है। हो सकता है बच्चा आर्टस लेकर आईएएस, आईपीएस बनने की क्षमता रखता हो लेकिन माता पिता उसे डाॅक्टर या इंजीनियर तक ही बनाने का सोचते हैं। इससे बच्चा ना तो डाॅक्टर इंजीनियर बन पाता है और यदि किसी सूरत में बन भी गया तो वह पूरी जिंदगी अपने प्रोफेशन से खुश नहीं रहता है।
आमिर खान ने दी सीख
आमिर खान ने बच्चों को अपने निर्णय स्वयं करने के संबंध में सीख फिल्म थ्री ईडियट में भी दी थी। जिसे लोगों ने खूब सराहा भी था लेकिन यह बातें अधिकांशतया फिल्म देखने के समय याद होती है और जैसे ही व्यक्ति अपनी दिनचर्या में आता है उसे कुछ भी ध्यान नहीं रहता और वह अपने बच्चों में वही देखना चाहता है जो उसके सपने हैं। मैं यह नहीं कहता कि मां-बाप सपने नहीं देखे लेकिन सपनों को लेकर अपने बच्चों की राय भी अवश्य जानें कि वह इसमें रूचि भी रखते हैं या केवल उनके दबाव के कारण ही यह करने को तैयार है।
बढ़ती है आपराधिक प्रवृति
जिन बच्चों को माता-पिता हर समय पढ़ाई और उनके द्वारा बताए लक्ष्य के लिए टोकते हैं। उनमें से अधिकांश बच्चे आपराधिक प्रवृति की ओर बढ़ जाते हैं। इसका उदाहरण हाल ही में देखा गया। जिसमें मुम्बई के बहुचर्चित शीना बोरा हत्याकाण्ड के अनुसंधान अधिकारी पुलिस इंस्पेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे के बेटे सिद्धांत गणोरे ने अपनी ही मां दीपाली की हत्या कर दी। हत्या का कारण मात्र इतना था कि सिद्धांत अपनी मां दीपाली के रोज-रोज टोकने से खफा चल रहा था और उसने आवेश में आकर मां को मौत के घाट उतार दिया। इस पूरे मामले में भी पढ़ाई और मां-बाप की रोक टोक ने ही पूरे परिवार की खुशियां चंद मिनटों में काफूर कर दी। इसी तरह कई बच्चे दबाव में आकर घर छोड़ कर चले जाते हैं और अपराध की दुनिया में कदम रख देते हैं तो कुछ सुसाईड कर लेते हैं।
जिंदगी की परीक्षा जीतें
जिन बच्चों का परिणाम हाल ही में आया है या आने वाला है, उनसे एक ही अपील है कि मार्कशीट एक कागज का टुकड़ा है। इसके कारण कोई ऐसा कदम नहीं उठाएं जिससे कि आपका पूरा परिवार पछताने को मजबूर हो जाए। यदि किसी कारणवश आप इस परीक्षा में फेल भी हो गए हैं तो यह ध्यान रखें अभी जिंदगी की परीक्षा काफी बाकि है और उस परीक्षा में आपकी जीत अवश्य ही होगी। इस परीक्षा की हार से अपने आप को कमजोर ना बनाएं और दुगुनी मेहनत के साथ फिर से तैयारी में जुट जाएं।
नवीन वैष्णव
(पत्रकार), अजमेर
9252958987
navinvaishnav5.blogspot.com

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